Rakhi mishra

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चैन (प्रेरक लघुकथाएं)

आज कितने दिनों के बाद इस घर में खुशियाँ आ पाई है।


बाबू के नैन सजल हो उठते थे बार - बार। काश कि ऐसा ही भरा पूरा घर हमेशा रहा करता। और इसे देखने के लिये कमला भी आज होती। कितना चाहती थी वो ¸ कि इस घर का और खुशियों का जो विरह है वह समाप्त हो जाए। सारा परिवार एक साथ रहे¸ वे और कमला अपने पोते - पोतियों की जिद पूरी करने¸ उन्हें खिलाने में अपना बुढ़ापा धन्य करें।


लेकिन सब कुछ धरा का धरा ही रह गया था। एक एक कर सभी अपना भविष्य सँवारने के लिये माँ बाप का वर्तमान बिगाड़ निकल गये थे। अब तो शायद ये एक साथ रहने लगे है¸ ये देखकर ही कमला की आत्मा को चैन मिलेगा। वे पत्नी के चित्र के समक्ष उसकी प्रत्यक्ष उपस्थिति की भाँति बातें करने लगे थे।


उन्हें लगा जैसे कमला मुस्कुराकर यह कह रही थी¸ "सुनो! आज कितना अच्छा लग रहा है भरा पूरा घर हमारा । मेरे अंतिम समय भले ही इनमें से कोई भी नहीं था लेकिन आपके जीते जी तो एक हुए है सभी। जाईये ! कह दीजीये इन सभी से¸ कि आपने उन्हें माफ कर दिया है।"


बाबू को याद आया । अपनी माँ के अंतिम समय में भी कोई बेटा साथ नहीं रह पाया¸ मुझसे मिलने भी नहीं आया। इस बात को याद कर वे काफी कठोर हो चले थे। पिछले साल भर में तो व्यवहार में कटुता बढ़ने लगी थी। ये बात बेटों को समझ में आई थी¸ उन्होने पिछली बीमारी में आकर माफी भी माँगी थी। उनके बचने की उम्मीद कम थी लेकिन ऊपरवाले की मर्जी कुछ और थी¸ बच गये।


तभी बाबू के कमरे का दरवाजा खुला। अजय विजय दोनों आए थे। बिना औपचारिकता के बातें शुरू हुई।


"बाबू ! आप तो जानते ही है कि मेरी नौकरी और अजय के व्यापार में से समय निकालकर आपसे मिलने आना कितना मुश्किल हो चला है इन दिनों।"


"......"


"और भैया के या मेरे घर आकर रहने में भी अपकी तैयारी नहीं है। हमारे घरों में आप एडजेस्ट नहीं हो पाते।"


"......"


"इसलिये हम लोगों ने इसका एक हल सोचा है। कहिये ना भैया।"


"बाबू अब ये मकान किराये पर चढ़ा देंगे। और आपकी व्यवस्था पास के ही आश्रम में कर दी है।"


"......"


"आपकी दवाईयों का खर्च इस किराये से निकलता रहेगा और... आपकी देखभाल भी हो जाएगी।"


"और सच कहें तो हम दोनों को भी आपकी चिंता लगी रहती है। सो इस तरह से हम भी चैन से रह पाएँगे।"


बाबू ने देखा¸ कमला का चेहरा कठोर हो चला था। आखिर वे किसी एक को ही तो यह चैन दे सकते थे।

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